असंभव को संभव बनाने ,मै चल पड़ा हूँ।

असंभव को संभव बनाने ,मै चल पड़ा हूँ 

हाँ इतिहास को  बदलने ,मैं निकल पड़ा हूँ

मुझे रोकने खड़ी ,तूफानी बयार है 

तो मेरे पास भी होंसलो और मजबूत इरादों की सुनामी  तैयार है।

चाहे पर्वत भी रोड़ा बन जाये , फिर भी  चलता रहूंगा ,

ख्वाब आँखों मैं लिए  मचलता  रहूँगा।

समंदर  की लहरों ने भी ,अपना रौद्र रूप दिखाकर

मुझे रोकने की कोशिशे शुरू कर दी हैं ,

अब बस बहुत सह लिया इनको ,इन लहरों का रुख मोड़ना हैं,

जो बयार इन धाराओं को विशाल लहरे बनाती हैं ,

उसका गरूर तोडना हैं ,जो  ख्वाब टूट गए थे इस तूफ़ान मैं ,उन्हें एक एक कर फिर से जोड़ना हैं।

अब देखना तुम ,आगे ही आगे बढ़ता जाऊँगा 

इतिहास के नए अध्याय गढ़ते जाऊंगा 

पर्वत क्या चीज़ हैं ,एवेरेस्ट भी चढ़ते जाऊंगा।

 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ईश्वर

सोचा है कभी - hindi poem about depression