असंभव को संभव बनाने ,मै चल पड़ा हूँ।
असंभव को संभव बनाने ,मै चल पड़ा हूँ हाँ इतिहास को बदलने ,मैं निकल पड़ा हूँ मुझे रोकने खड़ी ,तूफानी बयार है तो मेरे पास भी होंसलो और मजबूत इरादों की सुनामी तैयार है। चाहे पर्वत भी रोड़ा बन जाये , फिर भी चलता रहूंगा , ख्वाब आँखों मैं लिए मचलता रहूँगा। समंदर की लहरों ने भी ,अपना रौद्र रूप दिखाकर मुझे रोकने की कोशिशे शुरू कर दी हैं , अब बस बहुत सह लिया इनको ,इन लहरों का रुख मोड़ना हैं, जो बयार इन धाराओं को विशाल लहरे बनाती हैं , उसका गरूर तोडना हैं ,जो ख्वाब टूट गए थे इस तूफ़ान मैं ,उन्हें एक एक कर फिर से जोड़ना हैं। अब देखना तुम ,आगे ही आगे बढ़ता जाऊँगा इतिहास के नए अध्याय गढ़ते जाऊंगा पर्वत क्या चीज़ हैं ,एवेरेस्ट भी चढ़ते जाऊंगा।
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जवाब देंहटाएंमाँ से ही जाना था चलना
जवाब देंहटाएंमाँ से सीखा कम में ढलना
माँ ने सिखलाया था हर ढंग
माँ से जाने जीवन के रंग
माँ की ममता ने समझाया
कैसे सब पर प्यार लुटाते
माँ से ही तो सीखा हमने
कैसे रिश्ते सभी निभाते..
माँ माँ है सब सह लेती है
पर कभी नही उसका मन छलना...
माँ से ही जाना था चलना
माँ से सीखा कम में ढलना
Plz My own youtube channel
https://www.youtube.com/c/ankitshuklapoetryworld
Nice poem...
हटाएंAnd thnq for comment