एक स्त्री की कहानी।

कभी माँ के रूप में ,बच्चो को पालती है 

तो कभी गृहिणी बन ,घर संभालती हैं। 

वो एक हैं ,पर किरदार अनेक हैं उसके 

कभी किसी की सहेली हैं ,तो कभी जिसे तुम समझ न पाए वो अनसुलझी पहेली है। 

कभी अपने भैया की ,प्यारी बहना  

तो कभी पति की पत्नी बन प्यार है ,वो लुटाती 

घर में कभी तनाव हो तो ,वो खुशिया हैं जुटाती 

जो बेड़ियाँ  उनके पैरो में बंधी हैं  ,उन्हें  एक एक कर तोड़ दिया।,

जो समंदर था रास्ते में ,उसे भी निचोड़ दिया। 

समाज के बनाये रीति रिवाजो में , वो हमेशा से जलती रही। 

राह में रोड़े अनेक हैं उसके ,

पर वो अपने सपनो के खातिर अनवरत ही चलती रही। 


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