Tum kahan gum ho - poetry dedicated to my brother
तुम कहां गुम हो / tum kahan gum ho
Hindi Poetry for my brother
A message from your beloved little brother
#तुम कहां गुम हो
घर का हर एक कमरा, ऊपर- नीचे सब जगह तलाशा तुम्हे
सिर्फ तुम्हारी पुरानी तस्वीरें मिली, उनसे जुड़ी कुछ टूटी बिखरी यादें भी मिली ,पर तुम कहीं भी ना मिले।
आखिर तुम कहां गुम हो!
सब कुछ खामोश सा है.. यहां कहीं अरसो से
तुम्हारे जाने के बाद ,इस सूखे रेगिस्तान में बिल्कुल बारिश नहीं हुई है ,पिछले कहीं बरसो से।
सब कुछ सूखा सूखा सा है ,
अनन्त गमो का सैलाब हमारे पीछे छोड़ ,
तुम कहां गुम हो!
रोज दूर गगन में देर रात तक देखता रहता हूं जिसे
क्या वो तारा तुम हो।
तुम्हे पाने के लिए कभी हवाओं को छूकर देखा,
तो कभी खुद को धूप में सेंखा,
ना जाने कितनी बार तुम्हारी रूह को महसूस किया
पर तुम कभी दिखाई नहीं दिए
आखिर तुम कहां गुम हो!
हार टंगा देख तुम्हारी एक तस्वीर पे
मै कैसे मान लूं ,वो तुम हो
पता नहीं लोग क्यों कहते है कि
मै तुमसे कभी मिल नहीं पाऊंगा,
आखिर ऐसे तुम मुझे छोड़ कहां गुम हो!
मेरी धड़कने चलती है जिस जगह
क्या महज अब वहीं पे तुम हो?
बहुत खूब। Read our poems at https://aajkakavi.github.io/
जवाब देंहटाएंThank uuu...ji jrur
हटाएंThank u so much
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